नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी बोले: हमने ईंट की दीवारें बहुत बना दीं, दीवारें गिराकर मोहब्बत के पुल बनाएं

Ek Sham Mohabbat Ke Naam: भोपाल में एक शाम मोहब्बत के नाम रही। जानेमाने शायर और कवि मंजर भोपाली के बड़ी झील किनारे निवास बादबान में शायरी, कविताएं और नज्में सुनाई गईं। महफिल में अंजुम बाराबंकी, साजिद रिजवी, शिफाली पांडे, पूर्व IPS MS सिकरवार और CISF के DIG एम.एल. सिंह ने समां बांध दिया।

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी बोले- हम दीवारों को तोड़ें

Kailash Satyarthi
नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि मैं कई बार सोचता हूं कि सिंधु घाटी की सभ्यता जब थी। तब से लेकर अब तक लोगों ने ईंटें बनानी शुरू की। फिर बाद में चूना, फिर सीमेंट, फिर कंक्रीट ईजाद किया। और इतनी सारी दीवारें बना डालीं। मुल्कों की दीवारें, भरोसे की दीवारें, अलग-अलग विचारधाराओं की दीवारें। अपने स्वार्थों की दीवारें। ऐसा लगता है कि पूरी दुनिया में दीवारों का जंगल खड़ा है। आज वो वक्त आ गया है कि हम दीवारों को तोड़ें। संभव है कि उन्हीं ईंटों में से हम अच्छी-अच्छी ईंटें छांटकर पुल बनाने शुरू करें। बहुत हैं हमारे पास ईंटें, हम पुल बना सकते हैं। दीवारों में हमने उनका बेजा इस्तेमाल कर लिया है।

‘शायरों के भीतर से आती है सच्ची आवाज’

ek sham mohabbat ke naam

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि मुझे कहते हुए कोई गुरेज नहीं है कि शायद ये दीवारें, जो धर्म गुरू हैं अलग-अलग धर्मों के, उपदेशक हैं, राजनेता हैं अलग-अलग पार्टियों के, उनसे बातें करता हूं। बहुत बड़े पैसे वाले लोग, बहुत बढ़िया दुनिया का सपना देखने वाले लोग, अंतरिक्ष में घर बनाकर जमीनें बेचने वाले लोग, घर का सपना दिखाने वाले लोग, ऐसे लोगों से मुलाकात होती है। लेकिन जब मैं कुछ कवियों से, कुछ शायरों से मिलता हूं तो उनके भीतर से जो सच्ची आवाज आती है।

मुझे लगता है कि उस आवाज में ही वो प्यार है, वो ईमानदारी है, वो ताकत है कि वो आवाज इन दीवारों को ढहाने वाली साबित हो। क्योंकि और किसी से ये दीवारें ढहेंगी नहीं। फनकारों से ये दीवारें ढहेंगी। हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहां दीवारें मत बनाइए। बहुत बन चुकी हैं। कोशिश कीजिए कि आपकी कविता दीवार तोड़ने की कुदाल बन जाए। आपकी शायरी इस तरह की हो जाए, तो हम एक बेहतर दुनिया बनाएंगे, जहां आपस में कोई दूरियां नहीं रहेंगी। बहुत-बहुत दूरियां बन चुकी हैं।

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने सुनाई कविता मैं क्या हूं…

मैं बुदबुदा हूं, भंवर हूं, लहर हूं
मैं सैलाब हूं और सुनामी हूं,
मैं पोखर हूं, तालाब हूं नदी हूं
मैं ही बूंद और समंदर हूं
लेकिन सच ये है कि मैं सिर्फ पानी हूं

तुम मुझे श्वास कहो
झोंका कहो या आंधी
तूफान कहो या हरिकेन
असलियत में तो मैं सिर्फ हवा हूं

तुम लकीरें खींच-खींचकर कहते रहो
मुझे भारत या पाकिस्तान
अफ्रीका, अमेरिका या इंग्लिशतान
लेकिन मैं सिर्फ धरती हूं
एक ही धरती हूं

कब तक उलझे रहोगे तुम
अलग-अलग नाम देकर
मेरे आकारों और मेरी रफ्तारों को
जो कभी स्थायी नहीं होते
परंतु जो मरेगा नहीं कभी
वो सिर्फ मैं हूं
और वही मैं तुम हो
और वही तुम मैं हूं।

शायर मंज़र भोपाली ने आपसी सौहार्द्र का पैग़ाम देते हुए अपनी ग़ज़ल पेश की

“तुम भी पियो, हम भी पियें रब की मेहरबानी,
प्यार के कटोरे में गंगा का पानी।”
उनकी ग़ज़ल ने तमाम श्रोताओं के दिलों को छू लिया।

इस शाम में शायर इक़बाल मसूद ने टूटते रिश्तों का दर्द कुछ यूं बयान किया

“हमारी एक कहानी खो गई है,
थी जिसमें ज़िंदगानी खो गई है।”

अली अब्बास उम्मीद ने श्रोताओं का दिल जीता:
“कोई धूप देखकर डर गया,
कोई छांव पाकर ठहर गया।”

IPS अफ़सर महेंद्र सिंह सिकरवार का शे’र भी खूब पसंद किया गया

“अपने लब पे दुआ रखना,
बाग़ दिल का हराभरा रखना।”

वरिष्ठ शायर ज़फ़र सहबाई ने सत्यार्थी को नज़र करते हुए कहा

“हमेशा आपका चेहरा जगमगाता है,
हमें बताएं ये सोना कहां से आता है।”

किताब का विमोचन हुआ

 

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इसी मौके पर आईपीएस अफ़सर महेंद्र सिंह सिकरवार की किताब “साहित्य के मखमली लहज़े में इबारत” और मंज़र भोपाली पर शाया “इंतिसाब” पत्रिका का ख़ास अंक भी कैलाश सत्यार्थी के हाथों रोशन हुआ।

महफिल में ये रहे मौजूद

महफिल की अध्यक्षता उद्योगपति नवाब रजा ने की। संचालन वरिष्ठ पत्रकार और शायर डॉ. मेहताब आलम ने किया। महफ़िल में सीआईएसएफ के डीआईजी एम.एल. सिंह, साजिद रिज़वी, शैफ़ाली पांडे, सैफ़ी सिरोंजी, धर्मेंद्र सोलंकी, सूर्यप्रकाश अस्थाना, डॉ. मेहताब आलने अपने-अपने अंदाज़ में कलाम पेश कर महफ़िल को कभी संजीदा, तो कभी रूमानी बनाया। शहर के कई बुद्धिजीवी, वरिष्ठ पत्रकार और गणमान्य नागरिक इस आयोजन के सहभागी बने।