मुझे अकेले स्वर्ग नहीं चाहिए’, विदिशा में ऐसा क्यों बोले कैलाश सत्यार्थी? – KAILASH SATYARTHI AUTOBIOGRAPHY
विदिशा में पंडित गंगा प्रसाद पाठक कला न्यास वार्षिक समारोह में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा ‘दियासलाई’ पर चर्चा हुई.

विदिशा: जिले में पंडित गंगा प्रसाद पाठक कला न्यास का वार्षिक समारोह रविन्द्र नाथ टैगोर सभागार में आयोजित हुआ. इस अवसर पर नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा “दियासलाई” पर विचारोत्तेजक संवाद किया गया. इस दौरान कैलाश सत्यार्थी ने सभी पहलुओं पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि बच्चों की खुशी और व्यथित महिलाओं के आंसुओं में ईश्वर है.
सिर्फ मुझे स्वर्ग नहीं चाहिए
नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने अपनी आत्मकथा “दियासलाई” पर चर्चा करते हुए कहा कि सामाजिक जीवन में छुआछूत और नए विचारों से विसंगति को दूर करने के विचारों के चलते मेरा झुकाव आर्य समाज की तरफ हो गया. साथ ही उन्होंने कहा कि बच्चों की खुशी और व्यथित महिलाओं के आंसुओं में ईश्वर है. उन्होंने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, “मैं अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी स्वर्ग ले जाना चाहता हूं. मुझे अकेला स्वर्ग नहीं चाहिए. मैं करुणा का भूमंडलीकरण करना चाहता हूं. चेतना करुणा का मूल तत्व है.”